शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

दीवाने हैं ये...
दीवाने हैं ये दीवाने हैं ये
न छेड़ो इन्हें
न जगाओ इन्हें
लहरों के संग बहते हैं
 बह जाने दो इन्हें
पंछियों के संग उड़ाते हैं
 उड़ जाने दो इन्हें
मछलियों संग करते हैं बातें
करने दो इन्हें
फुल ए गुलिस्ताँ में बैठे हैं 
बैठने दो इन्हें
फूलों के संग गातें हैं
गाने दो इन्हें
एक दूजे के कन्धों पर
रखकर सर
सोए है ये
सोने दो इन्हें
आजाद है ये 
नीली छतरी तले
दीवाने हैं ये दीवाने है ये 
गुम हैं ये अपनी ख्वाबों तले.
                                       रमेश भगत 
                                           IIMC  
विस्थापन की पीड़ा


उस अथाह पीड़ा को सहना
अब सबके बस की बात नहीं
विस्थापन की पीड़ा झेल रहे
आदिवासियों को अब
पुनर्वास  की आस नहीं
कम्पनियों की बेहयाई से
उनके विस्थापन का इलाज नहीं
तो सरकार की बेरुखी से
उन्हें न्याय की आस नहीं
उनकी सत्याग्रह  और अहिंसा
गाँधी के देश को रास नहीं
उनका आक्रोश बढ़ता देख
माओ ने उन्हें आस बंधाई
पर जिसने है माओ को जाना 
कहते हिंसा उसका काम पुराना 
उनकी समस्या का समाधान करने 
आना होगा हम सबको सामने
ताकि उन्हें करे हम माओ से दूर 
और गाँधी हो सबके नूर.    
रमेश भगत
IIMC

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

बेचैनी इस कदर छाई है दिल में

बेचैनी इस कदर छाई है दिल में

बेचैनी इस कदर छाई है दिल में,
कि पल पल आस टूट रही.
नज़रों ने पल पल जिन्हें तलाशा,
उनकी आस में आस टूट रही.
कोई मरहम तो बताये टूटे आस की,
कि टूटे आस से मिलन कि आस पा सकूं.
जिया हूँ  जिनमे डूब कर,
उनकी परछाई भी अब दूर जा रही.
उनके साथ का आस लगाये हुए, 
अपनी परेशानियों के सहर होने का इंतजार कर रहा. 
न मालूम कब आएगी वो घड़ी,
जब मेरी नज़रों को उनका दीदार होगा. 
बेतहाशा अपनी कश्ती को दौड़ाये जा रहा, 
इस आस में की उनका साथ पा सकूँ.  
                                                            रमेश कुमार
                                                              IIMC