मंगलवार, 2 नवंबर 2010

चलो

चलो उस क्षितिज की ओर
जहाँ जमीं व आसमां
फुर्सत के कुछ पल जीते हैं.
चलो उस पंथ कि ओर
जहाँ आरती व अजान
भाई-चारे को बढ़ाते हैं .
चलो उस राह कि ओर
 जहाँ नर व नारायण
प्रकृति का प्यार पाते हैं.
चलो उस दिशा कि ओर 
जहाँ पछुआ व पुरवईया 
मिलकर गाती हैं. 
चलो उस समाज की ओर
जहाँ हिन्दू व मुसलमान
ईमान को जीते हैं.
चलो उस पथ की ओर
जहाँ दोस्त व दुश्मन 
मिलकर ख़ुशी मनाते हैं. 
                                  रमेश भगत 
                                     IIMC  

सोमवार, 1 नवंबर 2010

द्वंद

सामाजिक व आर्थिक विषमता को देख
कुछ कर गुजरने के ख्याल ने
बेचैनी पैदा कर दी मेरे मन में घोर
तब छिड़ा द्वंद दिल व दिमाग में
 दिल कहता घर ना छोड़ो
दिमाग कहता मुंह ना मोड़ो
तब सामाजिक उत्तरदायित्व ने
दोनों में समझौता कराई
फिर  निकले कदम घर से बाहर
दूर देश दिल्ली को
ताकि बनू मै पत्रकार
पढ़कर एक अच्छे संस्थान में
दिया परीक्षा अपनी योग्यता का
पर साबित ना हुई अपनी श्रेष्ठता
इसका हुआ  मुझे दुःख आपार
पर घरवालों ने दिया सहारा
आंच ना आने दी मुझे
पैसों कि कमी से
पर खुद झुलस गए उससे
खुद कठिनाईयों  से नाता जोड़ा
मेरे लिए एक और मौका छोड़ा
अपनी जिम्मेदारी का
है मुझे पूरा ज्ञान
पर कैसे करू, इस परीक्षा का समाधान..?
                                                  रमेश भगत
                                                      IIMC