मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

मुसीबत में पी जे कुरियन



-रमेश भगत

"...कुरियन की मुश्किलें इस वजह से और बढ़ गई हैं कि इस सामूहिक बलात्कार मामले के मुख्य आरोपी धर्मराजन ने कहा है कि इस घटना के वक्त खुद कुरियन गेस्ट हॉउस में ही मौजूद थे. उसने यह भी कहा है कि तत्कालीन जांच अधिकारी और वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त सी बी मैथ्यू ने इस मामले में कुरियन का नाम ना लेने के लिए उस पर दबाव बनाया था..."

पी जे कुरियन
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने राज्यसभा के उपसभापति और कांग्रेस सांसद पी जे कुरियन के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सुर्यनेल्ली सेक्स स्कैंडल मामले की सुनवाई करते हुए उसने केरल हाई कोर्ट को आदेश दिया है कि वो फिर से इस मामले की सुनवाई करे और सभी आरोपी फिर से अदालत में जमानत की अपील करें। 


कुरियन की मुश्किलें इस वजह से और बढ़ गई हैं कि इस सामूहिक बलात्कार मामले के मुख्य आरोपी धर्मराजन ने कहा है कि इस घटना के वक्त खुद कुरियन गेस्ट हॉउस में ही मौजूद थे. उसने यह भी कहा है कि तत्कालीन जांच अधिकारी और वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त सी बी मैथ्यू ने इस मामले में कुरियन का नाम ना लेने के लिए उस पर दबाव बनाया था. 
बहुचर्चित सुर्यनेल्ली सेक्स स्कैंडल सन् 1996 में केरल के इडुक्की जिले के सुर्यनेल्ली में हुआ था। मामला यह था कि 16 साल की एक लड़की को कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया। 40 दिनों तक 42 लोगों ने लड़की के साथ बलात्कार किया। उनमें एक आरोपी राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन भी हैं।
6 सितंबर 2000 को विशेष अदालत ने 35 लोगों को दोषी ठहराते हुए विभिन्न शर्तों पर कठोर कारावास की सज़ा सुनाई थी। पर इन 35 लोगों में पीजे कुरियन का नाम नहीं था। पीजे कुरियन के खिलाफ पीड़िता ने अलग से शिकायत की। लेकिन केरल हाई कोर्ट ने 35 लोगों को बरी कर दिया और सिर्फ़ एक व्यक्ति को सेक्स व्यापार का दोषी मानते हुए पाँच साल की क़ैद और 50 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया था। वर्ष 2005 में लड़की के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केरल का राजनीतिक पारा चढ़ गया है। मुख्य विपक्षी दल सीपीएम ने राज्य सरकार से इस मामले की फिर से जांच करवाने की मांग की है। विपक्षी दलों ने राज्यसभा के उपसभापति के पद से भी पीजे कुरियन का इस्तीफा मांगा है। अपनी मांगों के समर्थन में सीपीएम के साथ विपक्षी दलों ने विधानसभा से लेकर सड़कों तक विरोध-प्रदर्शन किया।
लेकिन राज्य सरकार विपक्षी दलों की मांग से इत्तेफाक नहीं रखती। केरल के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ओमान चांडी का कहना है कि पीजे कुरियन पर लगे आरोपों की जांच पहले ही की जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पीजे कुरियन को निर्दोष माना है। लिहाजा फिर से जांच का सवाल ही नहीं उठता है।’’
पीजे कुरियन ने भी अपने ऊपर लगे आरोपों को साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि पुलिस ने उन पर लगे आरोपों की 4 बार जांच की है। उन्हे दोषी नहीं पाया गया है। लेकिन बलात्कार पीड़िता के घरवालों का आरोप है कि पीजे कुरियन ने अपने राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाया है। पीड़िता के घरवालों ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पीजे कुरियन को राज्यसभा के उपसभापति पद से हटाने और उनपर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। इस पर कांग्रेस का कहना है कि आरोप की न्यायिक जांच हुई है और पार्टी इस बारे में भावना में बहकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकती है।
पार्टी का समर्थन पाने के बावजूद पीजे कुरियन की मुश्किले कम होती नहीं दिख रही है। मामले के अहम गवाह बीजेपी के एक स्थानीय नेताएस के राजन ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि पुलिस की ओर से अदालत में पेश किया गया उनका बयान वह नहीं था जो उन्होंने दर्जकराया था। राजन ने यह भी कहा है कि वह जांच टीम का हिस्सा रहे पूर्व एडीजीपी सी बी मैथ्यूज के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करेंगे।

इस मामले पर फैसला देने वाले केरल हाई कोर्ट के तात्कालीन न्यायाधीश ने भी बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया है। पूर्व न्यायाधीश का कहना है कि पीड़िता का बाल वेश्यावृत्ति में इस्तेमाल किया गया था, उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मामला सुलझता हुआ नहीं लग रहा है। राज्य में विपक्षी दलों ने सरकार पर दवाब बनाना शुरू कर दिया है।वहीं केंद्र सरकार भी इस मामले पर ज्यादा दिन चुप नहीं रह सकती है। कुछ ही दिनों बाद राज्यसभा में जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों परआधारित विधेयक पेश होगा। ऐसे में विपक्षी दल इस बात को मुद्दा बना सकते है कि बलात्कार के आरोपी के सामने ही बलात्कार रोकने काविधेयक कैसे पेश किया जा सकता है?

गुरुवार, 1 मार्च 2012

माओवादियों ने पेश की नई चुनौती



रमेश भगत
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ओडिशा के कई जिलों में पंचायत चुनाव के नतीजों ने केंद्र सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। खबर है कि अनेक पंचायतों में माओवादियों से जुड़े या उनके समर्थक सरपंच चुने गए हैं। दक्षिण ओडिशा के मलकानगिरि, कोरापुट, नुआपाड़ा, कंधमाल, बोलांगिर, रेयागाड़ा और कालाहांडी में हुए पंचायत चुनाव में सरपंच पद के लिए 447 उम्मीदवार खड़े हुए। जिसमें 33 उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए। पंचायत समिति सदस्य के लिए 46 उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए। वार्ड सदस्य के लिए 5461 उम्मीदवार खड़े हुए जिनमें से 2572 सदस्य निर्विरोध चुने गए।
इस चुनाव में एक तरफ तो नक्सली लोगों से पंचायत चुनाव का बहिष्कार करने को कह रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ वो अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े कर रहे हैं। इस चुनाव में जितने भी सरपंच निर्विरोध चुने गए हैं, बताया जाता है कि उनका संबंध नक्सलियों से है। नक्सलियों ने ऐलान किया था कि उनसे पूछे बिना कोई भी व्यक्ति उनके समर्थन से खड़े उम्मीदवारों के खिलाफ नामांकन नहीं करेगा। नक्सलियों की इस धमकी का व्यापक असर हुआ। एक तरफ नक्सलियों ने चुनाव बायकाट की अपील की, दूसरी तरफ अपने उम्मीदवारों को खड़ा करवाया। इससे नक्सल समर्थक उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए गए। ये सभी सरपंच दक्षिणी ओडिशा के मलकानगिरि और कोरापुट जिले के हैं। मलकानगिरि में नक्सलियों ने बकायदा प्रजा अदालत का आयोजन कर सरपंच का चुनाव कर लिया जिस पर गांववालों ने अपनी चुनावी मुहर लगा दी।
इस बात की खबर जब सुरक्षा एजेंसियों ने गृह मंत्रालय को दी तो गृह मंत्रालय के कान खड़े हो गए। उसने राज्य सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इस पर नजर बनाए रखने को कहा है। यह गृह मंत्रालय की चिंता का सबब इसलिए भी है कि ओडिशा पूर्वी भारत में नक्सलियों का बसे मजबूत गढ़ माना जाता है।
ओडिशा में नक्सलियों के खिलाफ जब से बीएसएफ को उतारा गया है तब से नक्सलियों को अपने कदम कई बार पीछे खींचने पड़े हैं। जिससे नक्सली दवाब महसूस कर रहे हैं। बीएसएफ से पार पाने के लिए ही नक्सलियों ने शायद इस नई रणनीति का सहारा लिया है। हालांकि नक्सिलयों के लिए ये कोई नई बात नहीं है। वो इस रणनीति का इस्तेमाल झारखंड में भी कर चुके हैं। जहां उनके समर्थक उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए थे।
ओडिशा में नक्सल समर्थित जितने भी उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए हैं उनसे नक्सलियों को कई फायदा हो सकता है। इसका सीधा फायदा ये होगा कि मनरेगा और पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि से मिलने वाली राशि का इस्तेमाल वे अपने हित में कर सकेंगे। एक बड़ी बात यह भी है कि नक्सलियों की जब स्थानीय प्रशासन में पकड़ मजबूत हो जाएगी तो वे इसका इस्तेमाल ढाल की तरह करते हुए बीएसएफ या अन्य सुरक्षाबलों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देंगे। इससे उनके सिकुड़ते प्रभाव क्षेत्र को नई ऊर्जा मिल सकती है।
नक्सलियों के स्थानीय प्रशासन में प्रवेश करने से सरकार की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। सरकार को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि जो धन राशि मनरेगा और पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि से ग्राम पंचायतों को दी जाएगी, उसका इस्तेमाल सही तरीके से किया जाए। साथ ही स्थानीय लोगों को भी पर्याप्त सुरक्षा-व्यवस्था मुहैया कराया जाए।
आमतौर पर नक्सली लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास नहीं करते। वे एक अलग व्यवस्था बनाने के पक्षधर रहे हैं, जो वर्गविहीन, जातिविहीन, और जनवादी हो। इसी कारण नक्सली हमेशा भारत में चुनाव का बहिष्कार करते रहे हैं। लेकिन अब लगता है कि उन्होंने चुनाव से तौबा करना छोड़ दिया है और स्थानीय प्रशासन में प्रवेश करने लगे हैं।
नक्सलियों की नई रणनीति भारतीय लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करेगी या मुश्किल में डाल देगी, ये तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना जरूर है कि नक्सलियों की इस रणनीति से भारत सरकार की मुश्किलें कम होने वाली नहीं है। 
                                                                                               नया इंडिया में छपा समाचार विश्लेषण