बाढ़
बाढ़ की विभीषिका को देख,
अश्क आँखों के सूख गए|
आह निकल गई सीने से,
जान हथेली आई है |
दुनिया ने लूटा ही हमें,
अब तुमने क्यों डूबोया है |
नहीं कुछ हो सकता सरकारों से ,
बातों में इन्होने उलझाया है |
रहम करो ऐ परवरदिगार ,
अब तेरा ही सहारा है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें