चलो उस क्षितिज की ओर
जहाँ जमीं व आसमां
फुर्सत के कुछ पल जीते हैं.
चलो उस पंथ कि ओर
जहाँ आरती व अजान
भाई-चारे को बढ़ाते हैं .
चलो उस राह कि ओर
जहाँ नर व नारायण
प्रकृति का प्यार पाते हैं.
चलो उस दिशा कि ओर
जहाँ पछुआ व पुरवईया
मिलकर गाती हैं.
चलो उस समाज की ओर
जहाँ हिन्दू व मुसलमान
ईमान को जीते हैं.
चलो उस पथ की ओर
जहाँ दोस्त व दुश्मन
मिलकर ख़ुशी मनाते हैं.
रमेश भगत
IIMC