शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

त्रिपुरा चुनाव: वाम फिर सत्ता की ओर



वहीं कांग्रेस के नेता भी दबी जुबान यह स्वीकार करते है कि सिर्फ हैलीकॉप्टर से आकर चुनावी रैलियों को सम्बोधित करने से ही चुनाव नहीं जीते जाते। आम जनता में हमारी पकड़ कमजोर है और हम केंद्र की योजनाओं के बारे में जनता को बताने में भी असफल रहे। यही हमारी जीत में सबसे बड़ी बाधा है।

रमेश भगत


त्रिपुरा के एक मतदान केंद्र में मतदान करते मतदाता 
त्रिपुरा में धुल उड़ाती हैलीकॉप्टरों और पहाड़ों की ऊचाईयों को भी लांघ जाने वाली चुनावी घोषणाओं को मतदाताओं ने थाम कर वोटिंग मशीन में कैद कर दिया है। चुनावी रैलियों से मतदाताओं की बढ़ी धड़कने तो थम गई है लेकिन विधानसभा के चुनावी उम्मीदवारों की धड़कने तेज हो गई है। उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला 28 फरवरी को होगा।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी

त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बड़े-बड़े नेताओं ने रैलियों को सम्बोधित किया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने तो सीपीएम को ना केवल राज्य से बल्कि देश से ही उखाड़ फेकने की अपील जनता से की। लेकिन सीपीएम गहरे पानी की तरह शांत रही। सीपीएम को पुरी उम्मीद है कि वो लगातार पांचवी बार सरकार बनाने में सफल होगी। चुनावी विश्लेषक भी इसे सही मान रहे हैं। इसका कारण बताते हुए वर्तमान मुख्यमंत्री व सीपीएम के उम्मीदवार माणिक सरकार कहते हैं कि त्रिपुरा में ना तो सिंगुर है और ना ही नंदीग्राम। इसके अलावा हमारे कार्यकर्ता सालों भर गांवों में लोगों से जुड़े रहते हैं।
त्रिपुरा के वर्तमान मुख्यमंत्री माणिक सरकार
 वहीं कांग्रेस के नेता भी दबी जुबान यह स्वीकार करते है कि सिर्फ हैलीकॉप्टर से आकर चुनावी रैलियों को सम्बोधित करने से ही चुनाव नहीं जीते जाते। आम जनता में हमारी पकड़ कमजोर है और हम केंद्र की योजनाओं के बारे में जनता को बताने में भी असफल रहे। यही हमारी जीत में सबसे बड़ी बाधा है।
त्रिपुरा में सरकार विरोधी लहर कहीं दिखाई नहीं दी। लोगों ने उत्साह से मतदान में हिस्सा लिया। त्रिपुरा में वोटिंग प्रतिशत हमेशा अच्छा रहा है। इस बार 93.57 फीसदी मतदान हुआ जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। पिछले विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने 91.22 फीसदी वोट किया था। जिससे सीपीएम को 46, कांग्रेस को 10, आरएसपी को 2, भाकपा और आईएनपीटी को 1-1 सीट मिली थी। इसबार भी विपक्षी दल सत्ताधारी सीपीएम को घेरने  में नाकाम रहे। विपक्षी दलों में मुद्दों को कमी दिखाई दी। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने बेरोजगारी, उग्रवाद और खराब शासन के मुद्दे पर सत्ताधारी सीपीएम को घेरने की कोशिश की। पर सीपीएम भी ईट का जवाब पत्थर से के अंदाज में जनता को बताने लगी कि त्रिपुरा सरकार मनरेगा सहित कई योजनाओं में बढ़िया काम कर रही है। इसके लिए केंद्र सरकार ने त्रिपुरा सरकार को पुरस्कार से भी नवाजा है। राज्य में उग्रवाद पर काबु पाने को भी सीपीएम बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश की। सीपीएम का ये भी कहना है कि यदि वो फिर सरकार बनाने में सफल होती है तो वो इस बार राज्य के अनुकूल उद्योगों को बढ़ावा देगी। जिससे रोजगार के नए अवसर खुलेंगे।
आईएनपीटी प्रमुख विजोय हरांखवाल

त्रिपुरा विधानसभा की 60 सीटों के लिए 249 उम्मीदवार खड़े हुए हैं। जिनमें 14 महिला उम्मीदवार और 20 से अधिक निर्दलीय उम्मीदवार हैं। वहीं 16 पार्टियां ने चुनाव में हिस्सा लिया है। इस विधानसभा चुनाव में सीपीएम और कांग्रेस आमने-सामने हैं। सीपीएम 56 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी है। सीपीएम की सहयोगी पार्टियां आरएसपी 2, भाकपा और फारवर्ड ब्लॉक 1-1 सीट पर चुनाव लड़ी है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस 48 सीटों पर चुनाव लड़ी। वहीं कांग्रेस की सहयोगी इंडीजिनियस नेशनल पार्टी ऑफ त्रिपुरा (आईएनपीटी) 11 सीटों पर और नेशनल कांफ्रेंस ऑफ त्रिपुरा एक सीट पर चुनाव में खड़ी हुई। भारतीय जनता पार्टी 50 सीटों पर चुनाव लड़ी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुधींद्र दासगुप्ता का कहना है कि पिछले चुनाव में पार्टी को 1.49 फीसदी वोट मिला था। पार्टी इस बार राज्य विधानसभा का हिस्सा जरूर बनेगी।
केरल और पश्चिम बंगाल में सत्ता गवाने के बाद त्रिपुरा ही एकमात्र राज्य है जहां वामपंथी सरकार कायम है। ऐसे में सीपीएम किसी भी सूरत में इस राज्य को अपने हाथ से गवांना नहीं चाहती है। उसने राज्य में साढ़े 53 हजार नए वोटरों को लुभाने के लिए भी विशेष प्रयास किया है। हांलाकि नए वोटरों को लुभाने में कोई पार्टी पिछे नहीं रही। लेकिन कुल मतदाताओं का रूझान क्या रहा और किसे वो सरकार के रूप में देखना चाहते हैं ये तो 28 फरवरी को ही पता चलेगा।


गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

गोरखालैंड की राजनीति



रमेश भगत


दरअसल विमल गुरूंग के इतना उत्तेजित होने का एक कारण यह भी है कि अलग गोरखालैंड राज्य के लिए लड़ने वाले अन्य संगठन विमल गुरूंग से नाराज हैं। उनकी नाराजगी का कारण जीटीए है। अन्य संगठनों का कहना है कि स्वायत्ता हमारा मकसद नहीं है, हमें अलग राज्य से कम कुछ नहीं चाहिए।






पश्चिम बंगाल के पहाड़ी इलाकों में फिर से राजनीतिक हवाएं तेज होने लगी है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख और गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के अध्यक्ष विमल गुरूंग ने अलग गोरखालैंड राज्य की मांग के लिए उग्र आंदोलन शुरू करने की धमकी दी है। विमल गुरूंग की धमकी के कई मायने हैं। दरअसल ममता बनर्जी चाहती है कि जिस तरह से गोरखाओं के लिए जीटीए बनाकर स्वायत्ता दी गई है उसी तरह बौद्धों और लेप्चाओं के लिए भी अलग से लेप्चा विकास परिषद् का गठन किया जाए। जीटीए के अध्यक्ष विमल गुरूंग, ममता बनर्जी की इस बात से नाराज है। विमल गुरूंग का कहना है कि लेप्चा विकास परिषद् का गठन जीटीए के अधिन होना चाहिए। लेकिन ममता बनर्जी फूट डालो और राज करो की नीति के तहत गोरखाओं और लेप्चाओं को अलग करना चाहती है। जीटीए का गठन त्रिस्तरीय समझौते के तहत हुआ है। इस समझौते में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार ने हस्ताक्षर किया है।



पिछले कुछ समय से विमल गुरूंग और ममता बनर्जी के रिश्ते सही चल रहे थे। लेकिन अब नहीं। दरअसल 29 जनवरी को दार्जिलिंग में हुए एक सरकारी कार्यक्रम में ममता बनर्जी और विमल गुरूंग साथ आए थे। उस कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने कहा कि दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का अभिन्न अंग है और इसे राज्य से अलग होने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों को गोरखालैंड की मांग को छोड़कर विकास पर ध्यान देना चाहिए। ममता बनर्जी के इस भाषण के बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने वी वांट गोरखालैंड के नारे लगाने लगे। जिससे अजीज आकर ममता बनर्जी ने कहा कि याद रखें मै इस मामले को रफ एंड टफ तरीके से भी निपटा सकती हूं। कुछ दिनों बाद विमल गुरूंग ने कहा कि ममता बनर्जी ने अपने नाम से उलट खुद को रफ एंड टफ बताकर अपने वास्तविक रूप का परिचय दिया है। ऐसी नीति चलती रही तो यह उनके राजनैतिक कैरियर का अंतिम चरण साबित होगा।



दरअसल विमल गुरूंग के इतना उत्तेजित होने का एक कारण यह भी है कि अलग गोरखालैंड राज्य के लिए लड़ने वाले अन्य संगठन विमल गुरूंग से नाराज हैं। उनकी नाराजगी का कारण जीटीए है। अन्य संगठनों का कहना है कि स्वायत्ता हमारा मकसद नहीं है, हमें अलग राज्य से कम कुछ नहीं चाहिए। साथ ही त्रिस्तरीय समझौते में सिर्फ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को बुलाने के लिए भी अन्य संगठनों ने राज्य व केंद्र सरकार की आलोचना की है। अन्य संगठनों के इस फैसले से गोरखाओं को लगने लगा है कि विमल गुरूंग अलग राज्य की मांग से हट रहा है। और सरकार के साथ नजदीकियां बढ़ाकर सिर्फ अपना फायदा देखने लगा है। इन बातों के दवाब में ही विमल गुरूंग ने अलग राज्य की मांग पर वापस लौटते हुए उग्र आंदोलन करने की धमकी दी है।

लेकिन विमल गुरूंग के इन धमकियों से ममता बनर्जी पर ज्यादा असर होने वाला नहीं है। क्योंकि ममता बनर्जी ने विमल गुरूंग को पहले ही कानूनी शिंकजे में कस रखा है। दरअसल मई 2010 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के तीन कार्यकर्ताओं ने अखिल भारतीय गोरखा लीग के नेता मदन तमांग की हत्या कर दी गई थी। अखिल भारतीय गोरखा लीग की अध्यक्षा भारती तमांग ने मदन तमांग की हत्या की सीबीआई जांच की मांग की है। सीबीआई जांच का डर ही विमल गूरूंग को कमजोर कर रहा है। जिसका राजनीतिक फायदा ममता बनर्जी उठा सकती है।

इस बात को ध्यान में रखकर विमल गुरूंग माकपा के करीब आने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन माकपा का संबंध विमल गुरूंग की अपेक्षा सुभाष घीषिंग से ज्यादा है। सुभाष घीषिंग गोरखालैंड नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता है लेकिन आम गोरखाओँ में उनका जनाधार काफी सिमट गया है।  ऐसे में माकपा विमल गुरूंग के साथ क्या गुल खिलाती है यही पहाड़ में चल रही राजनीतिक हवाओँ का मिजाज बता सकता है।
                                                        

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

मुसीबत में पी जे कुरियन



-रमेश भगत

"...कुरियन की मुश्किलें इस वजह से और बढ़ गई हैं कि इस सामूहिक बलात्कार मामले के मुख्य आरोपी धर्मराजन ने कहा है कि इस घटना के वक्त खुद कुरियन गेस्ट हॉउस में ही मौजूद थे. उसने यह भी कहा है कि तत्कालीन जांच अधिकारी और वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त सी बी मैथ्यू ने इस मामले में कुरियन का नाम ना लेने के लिए उस पर दबाव बनाया था..."

पी जे कुरियन
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने राज्यसभा के उपसभापति और कांग्रेस सांसद पी जे कुरियन के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सुर्यनेल्ली सेक्स स्कैंडल मामले की सुनवाई करते हुए उसने केरल हाई कोर्ट को आदेश दिया है कि वो फिर से इस मामले की सुनवाई करे और सभी आरोपी फिर से अदालत में जमानत की अपील करें। 


कुरियन की मुश्किलें इस वजह से और बढ़ गई हैं कि इस सामूहिक बलात्कार मामले के मुख्य आरोपी धर्मराजन ने कहा है कि इस घटना के वक्त खुद कुरियन गेस्ट हॉउस में ही मौजूद थे. उसने यह भी कहा है कि तत्कालीन जांच अधिकारी और वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त सी बी मैथ्यू ने इस मामले में कुरियन का नाम ना लेने के लिए उस पर दबाव बनाया था. 
बहुचर्चित सुर्यनेल्ली सेक्स स्कैंडल सन् 1996 में केरल के इडुक्की जिले के सुर्यनेल्ली में हुआ था। मामला यह था कि 16 साल की एक लड़की को कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया। 40 दिनों तक 42 लोगों ने लड़की के साथ बलात्कार किया। उनमें एक आरोपी राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन भी हैं।
6 सितंबर 2000 को विशेष अदालत ने 35 लोगों को दोषी ठहराते हुए विभिन्न शर्तों पर कठोर कारावास की सज़ा सुनाई थी। पर इन 35 लोगों में पीजे कुरियन का नाम नहीं था। पीजे कुरियन के खिलाफ पीड़िता ने अलग से शिकायत की। लेकिन केरल हाई कोर्ट ने 35 लोगों को बरी कर दिया और सिर्फ़ एक व्यक्ति को सेक्स व्यापार का दोषी मानते हुए पाँच साल की क़ैद और 50 हज़ार रुपए का जुर्माना लगाया था। वर्ष 2005 में लड़की के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केरल का राजनीतिक पारा चढ़ गया है। मुख्य विपक्षी दल सीपीएम ने राज्य सरकार से इस मामले की फिर से जांच करवाने की मांग की है। विपक्षी दलों ने राज्यसभा के उपसभापति के पद से भी पीजे कुरियन का इस्तीफा मांगा है। अपनी मांगों के समर्थन में सीपीएम के साथ विपक्षी दलों ने विधानसभा से लेकर सड़कों तक विरोध-प्रदर्शन किया।
लेकिन राज्य सरकार विपक्षी दलों की मांग से इत्तेफाक नहीं रखती। केरल के कांग्रेसी मुख्यमंत्री ओमान चांडी का कहना है कि पीजे कुरियन पर लगे आरोपों की जांच पहले ही की जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी पीजे कुरियन को निर्दोष माना है। लिहाजा फिर से जांच का सवाल ही नहीं उठता है।’’
पीजे कुरियन ने भी अपने ऊपर लगे आरोपों को साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि पुलिस ने उन पर लगे आरोपों की 4 बार जांच की है। उन्हे दोषी नहीं पाया गया है। लेकिन बलात्कार पीड़िता के घरवालों का आरोप है कि पीजे कुरियन ने अपने राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाया है। पीड़िता के घरवालों ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पीजे कुरियन को राज्यसभा के उपसभापति पद से हटाने और उनपर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है। इस पर कांग्रेस का कहना है कि आरोप की न्यायिक जांच हुई है और पार्टी इस बारे में भावना में बहकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर सकती है।
पार्टी का समर्थन पाने के बावजूद पीजे कुरियन की मुश्किले कम होती नहीं दिख रही है। मामले के अहम गवाह बीजेपी के एक स्थानीय नेताएस के राजन ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि पुलिस की ओर से अदालत में पेश किया गया उनका बयान वह नहीं था जो उन्होंने दर्जकराया था। राजन ने यह भी कहा है कि वह जांच टीम का हिस्सा रहे पूर्व एडीजीपी सी बी मैथ्यूज के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करेंगे।

इस मामले पर फैसला देने वाले केरल हाई कोर्ट के तात्कालीन न्यायाधीश ने भी बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया है। पूर्व न्यायाधीश का कहना है कि पीड़िता का बाल वेश्यावृत्ति में इस्तेमाल किया गया था, उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मामला सुलझता हुआ नहीं लग रहा है। राज्य में विपक्षी दलों ने सरकार पर दवाब बनाना शुरू कर दिया है।वहीं केंद्र सरकार भी इस मामले पर ज्यादा दिन चुप नहीं रह सकती है। कुछ ही दिनों बाद राज्यसभा में जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों परआधारित विधेयक पेश होगा। ऐसे में विपक्षी दल इस बात को मुद्दा बना सकते है कि बलात्कार के आरोपी के सामने ही बलात्कार रोकने काविधेयक कैसे पेश किया जा सकता है?