शनिवार, 5 नवंबर 2011

तालाश जारी है...


बीत गए बरस रास्तों में...
लेकिन तालाश जारी है...
 हम क्या थे और क्या हो गए....
 लेकिन तालाश जारी है...
कभी तुम्हारे पास थे
 आज तुम्हारे हो गए
 लेकिन तालाश जारी है...
खुद को पहचानने का दावा करते रहे....
 लेकिन खुद की तालाश जारी है
चाहु ओर ढुंढा खुदा को
अब खुद में खुदा की तालाश जारी है....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें