गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

गोरखालैंड की राजनीति



रमेश भगत


दरअसल विमल गुरूंग के इतना उत्तेजित होने का एक कारण यह भी है कि अलग गोरखालैंड राज्य के लिए लड़ने वाले अन्य संगठन विमल गुरूंग से नाराज हैं। उनकी नाराजगी का कारण जीटीए है। अन्य संगठनों का कहना है कि स्वायत्ता हमारा मकसद नहीं है, हमें अलग राज्य से कम कुछ नहीं चाहिए।






पश्चिम बंगाल के पहाड़ी इलाकों में फिर से राजनीतिक हवाएं तेज होने लगी है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रमुख और गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के अध्यक्ष विमल गुरूंग ने अलग गोरखालैंड राज्य की मांग के लिए उग्र आंदोलन शुरू करने की धमकी दी है। विमल गुरूंग की धमकी के कई मायने हैं। दरअसल ममता बनर्जी चाहती है कि जिस तरह से गोरखाओं के लिए जीटीए बनाकर स्वायत्ता दी गई है उसी तरह बौद्धों और लेप्चाओं के लिए भी अलग से लेप्चा विकास परिषद् का गठन किया जाए। जीटीए के अध्यक्ष विमल गुरूंग, ममता बनर्जी की इस बात से नाराज है। विमल गुरूंग का कहना है कि लेप्चा विकास परिषद् का गठन जीटीए के अधिन होना चाहिए। लेकिन ममता बनर्जी फूट डालो और राज करो की नीति के तहत गोरखाओं और लेप्चाओं को अलग करना चाहती है। जीटीए का गठन त्रिस्तरीय समझौते के तहत हुआ है। इस समझौते में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार ने हस्ताक्षर किया है।



पिछले कुछ समय से विमल गुरूंग और ममता बनर्जी के रिश्ते सही चल रहे थे। लेकिन अब नहीं। दरअसल 29 जनवरी को दार्जिलिंग में हुए एक सरकारी कार्यक्रम में ममता बनर्जी और विमल गुरूंग साथ आए थे। उस कार्यक्रम में ममता बनर्जी ने कहा कि दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का अभिन्न अंग है और इसे राज्य से अलग होने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि लोगों को गोरखालैंड की मांग को छोड़कर विकास पर ध्यान देना चाहिए। ममता बनर्जी के इस भाषण के बाद गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने वी वांट गोरखालैंड के नारे लगाने लगे। जिससे अजीज आकर ममता बनर्जी ने कहा कि याद रखें मै इस मामले को रफ एंड टफ तरीके से भी निपटा सकती हूं। कुछ दिनों बाद विमल गुरूंग ने कहा कि ममता बनर्जी ने अपने नाम से उलट खुद को रफ एंड टफ बताकर अपने वास्तविक रूप का परिचय दिया है। ऐसी नीति चलती रही तो यह उनके राजनैतिक कैरियर का अंतिम चरण साबित होगा।



दरअसल विमल गुरूंग के इतना उत्तेजित होने का एक कारण यह भी है कि अलग गोरखालैंड राज्य के लिए लड़ने वाले अन्य संगठन विमल गुरूंग से नाराज हैं। उनकी नाराजगी का कारण जीटीए है। अन्य संगठनों का कहना है कि स्वायत्ता हमारा मकसद नहीं है, हमें अलग राज्य से कम कुछ नहीं चाहिए। साथ ही त्रिस्तरीय समझौते में सिर्फ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा को बुलाने के लिए भी अन्य संगठनों ने राज्य व केंद्र सरकार की आलोचना की है। अन्य संगठनों के इस फैसले से गोरखाओं को लगने लगा है कि विमल गुरूंग अलग राज्य की मांग से हट रहा है। और सरकार के साथ नजदीकियां बढ़ाकर सिर्फ अपना फायदा देखने लगा है। इन बातों के दवाब में ही विमल गुरूंग ने अलग राज्य की मांग पर वापस लौटते हुए उग्र आंदोलन करने की धमकी दी है।

लेकिन विमल गुरूंग के इन धमकियों से ममता बनर्जी पर ज्यादा असर होने वाला नहीं है। क्योंकि ममता बनर्जी ने विमल गुरूंग को पहले ही कानूनी शिंकजे में कस रखा है। दरअसल मई 2010 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के तीन कार्यकर्ताओं ने अखिल भारतीय गोरखा लीग के नेता मदन तमांग की हत्या कर दी गई थी। अखिल भारतीय गोरखा लीग की अध्यक्षा भारती तमांग ने मदन तमांग की हत्या की सीबीआई जांच की मांग की है। सीबीआई जांच का डर ही विमल गूरूंग को कमजोर कर रहा है। जिसका राजनीतिक फायदा ममता बनर्जी उठा सकती है।

इस बात को ध्यान में रखकर विमल गुरूंग माकपा के करीब आने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन माकपा का संबंध विमल गुरूंग की अपेक्षा सुभाष घीषिंग से ज्यादा है। सुभाष घीषिंग गोरखालैंड नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नेता है लेकिन आम गोरखाओँ में उनका जनाधार काफी सिमट गया है।  ऐसे में माकपा विमल गुरूंग के साथ क्या गुल खिलाती है यही पहाड़ में चल रही राजनीतिक हवाओँ का मिजाज बता सकता है।
                                                        

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