सोमवार, 1 नवंबर 2010

द्वंद

सामाजिक व आर्थिक विषमता को देख
कुछ कर गुजरने के ख्याल ने
बेचैनी पैदा कर दी मेरे मन में घोर
तब छिड़ा द्वंद दिल व दिमाग में
 दिल कहता घर ना छोड़ो
दिमाग कहता मुंह ना मोड़ो
तब सामाजिक उत्तरदायित्व ने
दोनों में समझौता कराई
फिर  निकले कदम घर से बाहर
दूर देश दिल्ली को
ताकि बनू मै पत्रकार
पढ़कर एक अच्छे संस्थान में
दिया परीक्षा अपनी योग्यता का
पर साबित ना हुई अपनी श्रेष्ठता
इसका हुआ  मुझे दुःख आपार
पर घरवालों ने दिया सहारा
आंच ना आने दी मुझे
पैसों कि कमी से
पर खुद झुलस गए उससे
खुद कठिनाईयों  से नाता जोड़ा
मेरे लिए एक और मौका छोड़ा
अपनी जिम्मेदारी का
है मुझे पूरा ज्ञान
पर कैसे करू, इस परीक्षा का समाधान..?
                                                  रमेश भगत
                                                      IIMC

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