शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

दीवाने हैं ये...
दीवाने हैं ये दीवाने हैं ये
न छेड़ो इन्हें
न जगाओ इन्हें
लहरों के संग बहते हैं
 बह जाने दो इन्हें
पंछियों के संग उड़ाते हैं
 उड़ जाने दो इन्हें
मछलियों संग करते हैं बातें
करने दो इन्हें
फुल ए गुलिस्ताँ में बैठे हैं 
बैठने दो इन्हें
फूलों के संग गातें हैं
गाने दो इन्हें
एक दूजे के कन्धों पर
रखकर सर
सोए है ये
सोने दो इन्हें
आजाद है ये 
नीली छतरी तले
दीवाने हैं ये दीवाने है ये 
गुम हैं ये अपनी ख्वाबों तले.
                                       रमेश भगत 
                                           IIMC  

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