शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

विस्थापन की पीड़ा


उस अथाह पीड़ा को सहना
अब सबके बस की बात नहीं
विस्थापन की पीड़ा झेल रहे
आदिवासियों को अब
पुनर्वास  की आस नहीं
कम्पनियों की बेहयाई से
उनके विस्थापन का इलाज नहीं
तो सरकार की बेरुखी से
उन्हें न्याय की आस नहीं
उनकी सत्याग्रह  और अहिंसा
गाँधी के देश को रास नहीं
उनका आक्रोश बढ़ता देख
माओ ने उन्हें आस बंधाई
पर जिसने है माओ को जाना 
कहते हिंसा उसका काम पुराना 
उनकी समस्या का समाधान करने 
आना होगा हम सबको सामने
ताकि उन्हें करे हम माओ से दूर 
और गाँधी हो सबके नूर.    
रमेश भगत
IIMC

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