स्वामी अग्निवेश के साथ एक मुलाकात
(an interview with swami agnivesh)
भाग:- दो
देश में उदारीकरण अपनाये जाने के बाद भारत और इंडिया के बीच की खाई बहुत बढ़ गयी है। इस विषमता ने देश के समक्ष कई समस्याओं को जन्म दिया है। इस पर आपका क्या विचार है?
देश में उदारीकरण अपनाये जाने के बाद भारत और इंडिया के बीच की खाई बहुत बढ़ गयी है। इस विषमता ने देश के समक्ष कई समस्याओं को जन्म दिया है। इस पर आपका क्या विचार है?

स्वामीजी अभी हाल में अरुंधती राय ने कश्मीर पर अपना विवादास्पद विचार व्यक्त किया था। इस पर आपके क्या विचार हैं?
मै सबसे बड़ी बात यह कहना चाहता हूँ कि अरुंधती राय की मै बेहद इज्जत करता हूँ । वो इसलिए कि वो बेलाग-बेखौफ होकर अपने विचार रखती है। अपने आप में यह एक बहुत बड़ी बात है। उसको मै गांधी का या किसी बुद्ध का रूप समझता हॅू। वो इस बात की परवाह नहीं करती कि बात आपको पसंद आ रही है या नहीं या आप उसपर पत्थर फेकेगें, गाली देगें या प्यार करेगें। मतलब कि उसके जो अंन्दर है वही बाहर है। बाकि किसी संदर्भ में किसी को लग सकता है कि नहीं, ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए तो उसके साथ बैठे, बात करे। वो बात कह रही है, पत्थर नहीं मार रही है या बंदूक नहीं उठा रही है कि मेरी बात को मानो। वो, एक अकेली औरत अपने आप को "minority of one" कहती है। एक औरत कलम लेकर कोई बात कह रही है तो उसको भी सुनने से कोई समाज और राष्ट्र-राज्य घबरा जाए तो इससे ज्यादा नालायकी कुछ नहीं है। एक औरत की बात को सुनने से कोई घबरा जाए कि अरे क्या कह दिया? क्यों कह दिया? और उसको दबाने की कोशिश हो रही है। उसको गिरफ्तार करो, धारा लगाओ। ये तो सबसे गए-गुजरे समाज की पहचान है। उसके सुनो, समझो। उससे सहमत नहीं हो तो कहो कि हम आपसे सहमत नहीं है। वो नहीं कह रही है कि आपको जरुर होना पड़ेगा। उसके पास सरकार जैसी ताकत भी नहीं है। वह जैसा अनुभव कर रही है बोल रही है। यह बहुत बड़ी बात है। हमारे अन्दर भी यही साहस होना चाहिए।
माओवादियों और सरकार के बीच मध्यस्ता के लिए आप सामने आये थे। उसका क्या हुआ? 

इसमें आप किसका हाथ मानते है?

मतलब आप यह मानते है कि सरकार ने हिंसा का जो रास्ता नक्सलियों को दबाने के लिए अपनाया है। वह गलत है?

अन्दर से बहुत ही घटिया और गंदे लोग सरकार में बैठे हुए हैं। इनका एक-एक का घोटाला, इनके एक-एक के रिश्तेदारों के सारे घोटाले इस बात को बयान करते हैं। इनके पैसे कहां जमा है? देश में-विदेश में। हमारे चारो तरफ जो सारा तंत्र है वो एकदम सढ़ंाध फैला रहा है। एक के बाद एक घोटाले हो रहे हैं। और हम ऐसा सोच रहे है कि अरे ये तो होता ही रहता है। क्या होना है? कुछ नहीं होना है। जो युवा पीढ़ी है उसके अन्दर एक आक्रोश उमड़नी चाहिए। इनमें से एक घटना का भी समुचित इलाज करने के लिए देशकृत संकल्प हो तो सारी व्यवस्था सुधर सकती है। रोज के हिसाब से घोटाले हो रहे हैं और हम फिर भी शांत बैठे हुए हैं। पत्रकारिता की ट्रेनिंग ले रहे हैं। क्या करोगे बताओ पत्रकारिता की ट्रेनिंग लेकर? ये सारे जिनको हम नेता मान रहे हैं, इनकी जगह जेल में होनी चाहिए। इनमें से कई को सजाए मौत होनी चाहिए। हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम रोज पढ़ रहे हैं और रोज कुढ़ रहे हैं। लेकिन कोई ज्वाला नहीं फुट रही है। वो एक चुनौती है जिसे हरेक को महसुस करनी चाहिए।