सोमवार, 24 जनवरी 2011

पहली बार आईआईएमसी में लगी पुस्तक प्रदर्शनी

  पहली बार आईआईएमसी में लगी पुस्तक प्रदर्शनी ­­­­

कहते हैं किताब इंसान का सबसे अच्छा साथी होता हैं। देश दुनिया की तमाम बातें हम किताबों से जान सकते हैं, समझ सकते हैं और अपना एक विचार भी बना सकते हैं। किताबों के इसी महत्व को समझते हुए भारतीय जनसंचार संस्थान ने 20 जनवरी को पुस्तक
प्रदर्शनी का आयोजन करवाया। मंच पर आयोजित इस पुस्तक प्रदर्शनी का शुभारंभ संस्थान के निदेशक सुनित टंडन ने किया। यह प्रदर्शनी काफी सफल रही। इस पुस्तक प्रदर्शनी की खास बात यह रही कि यह पूरी तरह मीडिया पर आधारित पुस्तकों की प्रदर्शनी थी। इस प्रदर्शनी में दस से अधिक पुस्तक विक्रेताओं ने भाग लिया। ये पुस्तक विक्रेता अपने साथ कई प्रकाशनों की किताबें लाये थे। ये किताबें हिन्दी और अंग्रेजी दोनो भाषाओं में थी। लेकिन अंग्रेजी भाषाओं की किताबों की बहुलता रही। इस पुस्तक प्रदर्शनी में संस्थान के छात्र-छात्राओं, शिक्षक-शिक्षकाओ ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। विभिन्न विभागों के प्रमुखों ने अपने-अपने विचारों के हिसाब से कई पुस्तकों की सिफारिश संस्थान के पुस्तकालय के लिए की। हिन्दी पत्रकारिता के प्रमुख डॉ आनन्द प्रधान ने छात्रों के द्वारा सुझाए गए किताबों की भी सिफारिश पुस्तकालय के लिए की। संस्थान में पढ़ने वाले विदेशी छात्र-छात्राओं ने भी इस पुस्तक प्रदर्शनी में भाग लिया। उन्होंने कई किताबों की खरीददारी भी की। अपने मतलब की किताब ढूंढ रही अफगानिस्तान की एक छात्रा ने बताया कि “यह पुस्तक प्रदर्शनी काफी अच्छा है। यहां आकर काफी खुशी हो रही है। यहां मीडिया की ढेरों की किताबें है। कुछ ऐसी भी किताबें हैं जो मेरे देश अफगानिस्तान में नहीं मिलती। मैने तो कुछ किताबों को खरीदा भी“। प्रदर्शनी में कई प्रकाशनों की किताबें लेकर आए पुस्तक विक्रेता ”सेलेक्ट बुक सर्विस” के सुशील कपूर ने बताया कि यह प्रदर्शनी काफी अच्छी रही। पुस्तकालय के लिए ढेर सारी
किताबों की सिफारिश की गई। साथ ही कई छात्रों ने किताबों को खरीदा भी। 2009 में नेशनल बूक ट्रस्ट द्वारा करवाये गए एक सर्वे में यह सामने आया कि देश के कुल साक्षर युवाओं में से मात्र 25 प्रतिशत युवा ही किताबें पढ़ते हैं। इस सर्वे में मजेदार बात यह रही कि इसमें से 18‐8 प्रतिशत युवा अपने माता-पिता के कहने पर ही पढ़ने के लिए प्रेरित हुए हैं। यह एक चिंताजनक स्थिती है कि देश के युवाओं के बीच किताब पढ़ने का रूझान कम होता जा रहा है। इसका एक कारण तकनीक का विकास भी है। अब ज्यादातर लोग वेब में या कैडंल में ही किताबें पढ़ने लगे हैं। लेकिन यह भी सच है कि आज नए-नए प्रकाशन सामने आ रहे हैं। जो यह साबित करता है कि किताबों की दुनिया को कमजोर करके नहीं देखा जा सकता है।
             इस पुस्तक प्रदर्शनी में जब छात्र-छात्राओं से यह पूछा गया कि वे पुस्तक प्रदर्शनी को लेकर क्या सोचते हैं तो उनका जबाब था कि पहली बार संस्थान में ही आयोजित इस प्रदर्शनी का अनुभव काफी अच्छा रहा।भले ही आकड़ों में लोगों में किताब पढ़ने का रूझान कम दिखाई दे रहा हो लेकिन इस प्रदर्शनी में छात्रों और शिक्षकों के आवागमन को देखकर यही कहा जा सकता है कि किताबों की दुनिया अनोखी है और हर कोई इस अनोखी दुनिया में जीना चाहता है।
                                                                                                     रमेश कुमार

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