गुरुवार, 27 जनवरी 2011

स्वामी अग्निवेश के साथ एक मुलाकात


 (an interview with swami agnivesh)
भाग:- दो
 देश में उदारीकरण अपनाये जाने के बाद भारत और इंडिया के बीच की खाई बहुत बढ़ गयी है। इस विषमता ने देश के समक्ष कई समस्याओं को जन्म दिया है। इस पर आपका क्या विचार है?
जिस समय देश में औद्योगिकरण पहुंचा भी नहीं था उस समय 1909 में गांधीजी हिन्द स्वराज में कहते हैं कि “यह विकास नहीं शैतानी है“। इसकी मूल अवधारणा हिंसा पर आधारित है और विषमता ही सबसे बड़ी हिंसा है। इंसान और इंसान के बीच में जन्म के आधार पर पहचान, जातिवाद का विभेद, लिंग का विभेद, बेटा-बेटी का विभेद, गोरे-काले का विभेद, गरीब-अमीर का विभेद,ये चार-पांच  तरह के विभेद है। इन्हें बिल्कुल नहीं मानना है बल्कि एक समतामूलक समाज बनाना है। इससे न तो गांव-शहर के बीच विषमता रह सकती है न ही शहर के अन्दर अमीरी-गरीबी, ऊंची जात-छोटी जात और न ही बेटा-बेटी का फर्क रह सकता है। शिक्षा के माध्यम से सबको समान अवसर मिलें। ये सब हमारी सबसे पहली प्रतिबद्धताएं होनी चाहिए। अशिक्षा ही विषमता को और गहरा कर रही है। पहले से जो पिछड़े हैं वो और भी पिछड़े होते जा रहे हैं। उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता बल्कि ऊपर के पदों के लिए आरक्षण की सब कोशिश कर रहे हैं। सबसे बड़ी चीज यह है कि हमारे जो शिक्षा विद्यालय हैं उनमें हर बच्चे को समान शिक्षा मिले। अमेरिका जैसा देश जिसको हम पूंजीवादी देश कहते हैं वहां अधिक समता है शिक्षा में बजाय भारत जैसे तथाकथित समाजवादी देश में। शिक्षा में समता पर जोर दीजिए। और ये जितनी दिवारें जन्म के आधार पर हमनें उलटी बुद्धि से बना रखी हैं। इन सभी सड़ी-गली मान्यताओं, रूढ़ीयों को तोड़ना बहुत जरुरी है।
स्वामीजी अभी हाल में अरुंधती राय ने कश्मीर पर अपना विवादास्पद विचार व्यक्त किया था। इस पर आपके क्या विचार हैं?
मै सबसे बड़ी बात यह कहना चाहता हूँ  कि अरुंधती राय की मै बेहद इज्जत करता हूँ । वो इसलिए कि वो बेलाग-बेखौफ होकर अपने विचार रखती है। अपने आप में यह एक बहुत बड़ी बात है। उसको मै गांधी का या किसी बुद्ध का रूप समझता हॅू। वो इस बात की परवाह नहीं करती कि बात आपको पसंद आ रही है या नहीं या आप उसपर पत्थर फेकेगें, गाली देगें या प्यार करेगें। मतलब कि उसके जो अंन्दर है वही बाहर है। बाकि किसी संदर्भ में किसी को लग सकता है कि नहीं, ऐसा नहीं वैसा होना चाहिए तो उसके साथ बैठे, बात करे। वो बात कह रही है, पत्थर नहीं मार रही है या बंदूक नहीं उठा रही है कि मेरी बात को मानो। वो, एक अकेली औरत अपने आप को "minority of one" कहती है। एक औरत कलम लेकर कोई बात कह रही है तो उसको भी सुनने से कोई समाज और राष्ट्र-राज्य घबरा जाए तो इससे ज्यादा नालायकी कुछ नहीं है। एक औरत की बात को सुनने से कोई घबरा जाए कि अरे क्या कह दिया? क्यों कह दिया? और उसको दबाने की कोशिश हो रही है। उसको गिरफ्तार करो, धारा लगाओ। ये तो सबसे गए-गुजरे समाज की पहचान है। उसके सुनो, समझो। उससे सहमत नहीं हो तो कहो कि हम आपसे सहमत नहीं  है। वो नहीं कह रही है कि आपको जरुर होना पड़ेगा। उसके पास सरकार जैसी ताकत भी नहीं है। वह जैसा अनुभव कर रही है बोल रही है। यह बहुत बड़ी बात है। हमारे अन्दर भी यही साहस होना चाहिए।
माओवादियों और सरकार के बीच मध्यस्ता के लिए आप सामने आये थे। उसका क्या हुआ?
काफी कुछ सफलता मिल रही थी। उनका(माओवादियों) जबाब भी आ गया था। बातचीत के लिए वे (माओवादी) आगे आ रहे थे, चिट्ठी लिखकर के उन्होंने कहा था। लेकिन अचानक उस व्यक्ति (चिरकुरी राजकुमार आजाद) को मार डाला गया, जिसने हमें पत्र लिखा था। उसके साथ हेमचन्द्र पांडे को भी मार डाला गया।
इसमें आप किसका हाथ मानते है?
 इसमें मै सरकार का हाथ मानता हूँ । इसलिए बार-बार मांग कर रहा हूँ  कि न्यायिक जांच कराओ। न्यायिक जांच का वादा करके प्रधानमंत्री स्वयं पिछे हट रहे हैं और जांच नहीं करा रहे हैं। मै इसे प्रधानमंत्री की बहुत बड़ी कमजोरी मानता हॅू। अब मुझे उनकी सदाशयता के ऊपर ही अविश्वास हो रहा है। वो अन्दर से ईमानदार नहीं हैं। वो नहीं चाहते कि उनके साथ बातचीत हो और बातचीत से ही कोई समाधान निकले।
 मतलब आप यह मानते है कि सरकार ने हिंसा का जो रास्ता नक्सलियों को दबाने के लिए अपनाया है। वह गलत है?
 बेहद! बेहद गलत है। ये हिंसा का रास्ता नहीं है। ये तो धोखेबाजी का, अविश्वास का रास्ता है। जिसको आप कह रहे हैं. कि आओ बातचीत करो और जब वह बातचीत के लिए बाहर आता है तो आप उसे पकड़ कर मार डालते हैं। ये तो घटिया से घटिया स्तर का चरित्र है। अगर कोई दूत संदेश ले कर के आप के पास आ रहा हो तो आप तो इतना तो करेगें कि आप संदेश लेंगे और जाने देंगे। तभी तो कोई आपसे बात करेगा। उसको (आजाद) बाहर निकलवाया किसी बहाने से और फिर उसको मार डाला। और मेरे जैसे सन्यासी को बीच में डाल दिया। मै हिंसा का घोर विरोधी हॅू। आपरेशन ग्रीनहंट का विरोधी। नक्सली हिंसा का विरोधी। मै तो पशु-पक्षी, प्राणी की भी हिंसा बर्दाश्त नहीं कर सकता। लेकिन मुझे बीच में चिट्ठी पकड़ा कर कहा गया कि आप हमारी बातचीत कराइये। मै बातचीत कराने के लिए आया और मेरे साथ ही धोखा हो गया।
 आज हमारी सरकार विभिन्न घोटालों और भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी पड़ी है। इसमें नेता, मंत्री और अफसर सभी शामिल हैं। इस पर आपका क्या कहना है?

 अन्दर से बहुत ही घटिया और गंदे लोग सरकार में बैठे हुए हैं। इनका एक-एक का घोटाला, इनके एक-एक के रिश्तेदारों के सारे घोटाले इस बात को बयान करते हैं। इनके पैसे कहां जमा है? देश में-विदेश में। हमारे चारो तरफ जो सारा तंत्र है वो एकदम सढ़ंाध फैला रहा है। एक के बाद एक घोटाले हो रहे हैं। और हम ऐसा सोच रहे है कि अरे ये तो होता ही रहता है। क्या होना है? कुछ नहीं होना है। जो युवा पीढ़ी है उसके अन्दर एक आक्रोश उमड़नी चाहिए। इनमें से एक घटना का भी समुचित इलाज करने के लिए देशकृत संकल्प हो तो सारी व्यवस्था सुधर सकती है। रोज के हिसाब से घोटाले हो रहे हैं और हम फिर भी शांत बैठे हुए हैं। पत्रकारिता की ट्रेनिंग ले रहे हैं। क्या करोगे बताओ पत्रकारिता की ट्रेनिंग लेकर? ये सारे जिनको हम नेता मान रहे हैं, इनकी जगह जेल में होनी चाहिए। इनमें से कई को सजाए मौत होनी चाहिए। हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम रोज पढ़ रहे हैं और रोज कुढ़ रहे हैं। लेकिन कोई ज्वाला नहीं फुट रही है। वो एक चुनौती है जिसे हरेक को महसुस करनी चाहिए।

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